बंजारा,लमाणी
या लंबाणी भारत में एक एसी घुमंतू जनजाति है जिसे आप यूरोपीय जिप्सी
घुमंतू जनजाति की तर्ज पर भारतीय जिप्सी कह सकते है | हालाँकि इसी बंजारा
समुदाय के कुछ पड़े लिखे उत्साही लेखकनुमा लोग यूरोपीय जिप्सी को भारतीय
बंजारों से कालांतर में विलग हुए बंजारे ही मानते है | उनका कहना है की आज
से लघभग 700 साल पहले कुछ बंजारे टांडे (केम्प) अपने पारंपरिक
व्यवसायों के साथ यूरोप चले गए थे | फिर धीरे धीरे राजस्थान से कुछ और
टांडे भी यूरोप में जाते गए और धीरे-धीरे वे यूरोप के कई देशो में बस गए
और वही के हो कर रह गए | उन बंजारों के घुमंतू प्रवर्ती के कारण उन्हें ही
वहा के लोगे ने जिप्सी कहना शुरू कर दिया | उनका एसा कहने का मूल कारण
जिप्सीयो की घुमंतू जीवन शैली, पहनावा, खान-पान इत्यादि है | हालांकि
जिप्सी और बंजारा समुदाय के परस्पर आपसी सम्बन्ध और दोनों के एक डी.एन.ए.
तक को लेकर न तो कोई घम्भीर इतिहास शोध कार्य हुआ और ना ही कोई वैज्ञानिक
मिलान | इसलिए अभी इसे कयास ही माने तो उचित होगा क्योंकि किसी अपने से
दिखने वाले समुदाय के साथ केवल खान-पान,रहन-सहन,पहनावा और जीवन शैली के
आधार पर खुद को किसी समुदाय का पुर्वज कहना बडबोलेपण से अधिक और कुछ नहीं
कहा जा सकता | यह ठीक वेसा ही तर्क है की यहाँ से गए थे बाहर,आर्य ही यहाँ
के मूलनिवासी थे | इसमें भी सबके अपने अपने तर्क है आर्यों के आगमन और
यहाँ से जाने को लेकर | जबकि अभी तक इसका कोई ठोस आधार नहीं मिला है |
इसलिए बंजारा और जिप्सी समुदाय के सम्बन्ध में जब तक कोई गंभीर शोध एवं
नृवैज्ञानिक आधार, भाषा वैज्ञानिक साम्य सामने नहीं आ जाता तब तक इस तरह
की किसी भी भावुक और उत्साही मान्यता या अवधारणा को तरजीह नहीं दी जा सकती
|
बंजारों की उत्पत्ति के बारे में किसी भी तरह की कोई जानकारी किसी मनुस्मती या किसी ब्राम्हणवादी पुस्तक से नहीं मिलती |
इसको लेकर आदिवासी समुदायों पर शोध कार्य करने वाले विद्वानों ने अपने-अपने तरीको या भाषा वैज्ञानिक आधार पर इसका विवेचन जरुर किया है | कुछ विद्वानों का कहना है कि बंजारा नामकरण से पहले इस समुदाय का नाम लमाण या गोर होता था | उसका कारण वे बंजारों का सम्बन्ध अफगानिस्तान के गोर पर्वत या जगह से होना मानते है | साथ ही लमाण लवण शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है नमक | यानी किसी ज़माने में यह बंजारा समुदाय नमक के व्यवसाय से जुडा था शायद इसीलिए इस समुदाय का नाम लमाणी हो गया |इसके अलावा कुछ विद्वान् मानते है की बंजारा शब्द बन्य + चरा से बना है | हालाँकि बंजारा और लमानी या लम्बानी एक ही समुदाय है, जिसकी भाषा,गोत्र,संस्कृति,जीवनशैली,खान-पान,टांडा में रहने की व्यवस्था सरपंच को नायक कहने की प्राचीन प्रथा, बंद समाज व्यवस्था इत्यादि लघभग एक ही है लेकिन इसके नामकरण और उद्भव को लेकर भी यह समुदाय अभी भी गहन शोध की बाट जो रहा है |
बंजारा समाज व्यवस्था एक बंद समाज व्यवस्था है इसे बिना किसी बिना झिझक के तथ्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है | समाज विज्ञान के अध्यन के क्षेत्र एवं अनुशाशन में दो तरह के समाज का जिक्र मिलता है इसमें एक है बंद समाज(close society) और दूसरा है खुला समाज(open society) |
बंद समाज वह होता है जो अपने समाज के क्रिया व्यापार, रीति रिवाज, मूल्य व्यवस्था इत्यादि में आधारभुत रूप से बाहरी वातावरण को या अन्य समाज के क्रिया-कलापों से प्रभावित नहीं होता | बंजारा या लमानी समुदाय का भी अगर करीबी गहराई से अध्यन करे तो पाएंगे की यह समुदाय भारत में कही भी गया, क्षेत्रीय प्रभाव के बावजुद इस समुदाय की आंतरिक जीवन प्रणाली और ढांचे में कोई विशेष अंतर नहीं आ पाया | अभी भी बंजारों की भाषा लघभग एक जेसी ही है | संस्कृति,पहनावा,गोर माटी,गोर बोली,टांडा संस्कृति,न्याय व्यवस्था में नायक की मुख्य भूमिका, प्रकृति की पूजा इत्यादी | जबकि खुले समाज या समुदाय बाहरी एवं क्षेत्रीय प्रभाव के कारण पुरी तरह से बदल जाते है | इस तरह से कहा जा सकता है की यह बंजारा या लमानी समुदाय की यह एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है की इतना समय बीत जाने के बाद भी उनमे कोई गुणात्मक परिवर्तन नहीं हो पाया |
भारत भूमि अनगिनत स्वातन्त्र्य वीरो को जन्म दे चुकी है | राजस्थान के गुजरात से जुडी हुई सरहद का जिल्ला डूंगरपुर के बांसीया गाव के गवारिया(बंजारा) परिवार में 20 दिसंबर, 1858 गोविन्द गुरु का जन्म हुआ था | उनके पिताजी का नाम श्री बेचरगीर और माताजी का नाम कमलाबाई था |
छप्पनिये अकाल में गोविन्द गुरु की पत्नी और पुत्रो की मृतु हो गई तब उन्होंने गनी नामक विधवा से संसार बसाया, जिनसे दो पुत्र हरी और अमरा ने जन्म लिया |
अब हरी महाराज का परिवार बांसीया गाव में और अमरु महाराज का परिवार बांसवाडा में बसा है |
दलित व वनवासी दोहरी गुलामी की बेडियो से जकड़े हुए थे | उनके शारीरिक श्रम का दोहन होता था |
कुछ समय पश्चात् एक राजगीर नामक गृहस्थ गोसाई से दीक्षा लेकर अपनी पत्नी सहित साधु हो गया |
गोविन्दगुरु को राजगिरी ने अपना शिष्य बनाया और राजगिरी की पत्नी ने गोविन्द गुरु की पत्नी को अपनी शिष्य बनाया |
गोविन्द गुरु श्रद्धा से नतमस्तक हुए और जीवन में रोशनी का रास्ता दिखाते हुए करबद्ध प्रार्थना की | स्वामीजी वनवासी गुमाक्कड़ बंजारा जाती के इस युवाक की ज्ञानपिपासा और समाज सेवा की द्रढ़ इच्छा के भाव को जानकर प्रसन्न हुए और बनवासियो में सामाजिक बुराइयो को दूर करने, समाज को भक्ति भाव से एकजुट करने की प्रेरणा दी|
श्री गोविन्द गुरु जातिगत संस्कार से भी भ्रमणशील व्यापार करने वाला बंजारा था | वे आदिवासियों में ज्ञान का व्यापर करने के लिए आदिवासी क्षेत्र के डगर-डगर, बस्ती-बस्ती,झोपड़ी-झोपड़ी तक व्यापक, सम्यक,एकता,संस्था,शुद्धता,स्वतंत्रता का महत्व समझाते रहे |
उन्होंने "सम्प सभा " नामक संस्था शुरू की जिनमे भिन्न-भिन्न कार्य हेतु ब्भिन्न व्यक्ति की नियुक्ति की |सम्प सभा के उद्देश्य थे -
History of Gawariya(Banjara) Community
The Gawariya(Banjara) are a class of usually described as nomadic people from the Indian state of Rajasthan, North-West Gujarat, and Western Madhya Pradesh and Eastern Sindh province of pre-independence Pakistan. They claim to belong to the clan of Agnivanshi Rajputs, and are also known as Banjari, Pindari, Bangala, Banjori, Banjuri, Brinjari, Lamani, Lamadi, Lambani, Labhani, Lambara, Lavani, Lemadi, Lumadale, Labhani Muka, Goola, Gurmarti, Gormati, Kora, Sugali, Sukali, Tanda, Vanjari, Vanzara, and Wanji. Together with the Domba, they are sometimes called the "gypsies of India"
बंजारों की उत्पत्ति के बारे में किसी भी तरह की कोई जानकारी किसी मनुस्मती या किसी ब्राम्हणवादी पुस्तक से नहीं मिलती |
इसको लेकर आदिवासी समुदायों पर शोध कार्य करने वाले विद्वानों ने अपने-अपने तरीको या भाषा वैज्ञानिक आधार पर इसका विवेचन जरुर किया है | कुछ विद्वानों का कहना है कि बंजारा नामकरण से पहले इस समुदाय का नाम लमाण या गोर होता था | उसका कारण वे बंजारों का सम्बन्ध अफगानिस्तान के गोर पर्वत या जगह से होना मानते है | साथ ही लमाण लवण शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है नमक | यानी किसी ज़माने में यह बंजारा समुदाय नमक के व्यवसाय से जुडा था शायद इसीलिए इस समुदाय का नाम लमाणी हो गया |इसके अलावा कुछ विद्वान् मानते है की बंजारा शब्द बन्य + चरा से बना है | हालाँकि बंजारा और लमानी या लम्बानी एक ही समुदाय है, जिसकी भाषा,गोत्र,संस्कृति,जीवनशैली,खान-पान,टांडा में रहने की व्यवस्था सरपंच को नायक कहने की प्राचीन प्रथा, बंद समाज व्यवस्था इत्यादि लघभग एक ही है लेकिन इसके नामकरण और उद्भव को लेकर भी यह समुदाय अभी भी गहन शोध की बाट जो रहा है |
बंजारा समाज व्यवस्था एक बंद समाज व्यवस्था है इसे बिना किसी बिना झिझक के तथ्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है | समाज विज्ञान के अध्यन के क्षेत्र एवं अनुशाशन में दो तरह के समाज का जिक्र मिलता है इसमें एक है बंद समाज(close society) और दूसरा है खुला समाज(open society) |
बंद समाज वह होता है जो अपने समाज के क्रिया व्यापार, रीति रिवाज, मूल्य व्यवस्था इत्यादि में आधारभुत रूप से बाहरी वातावरण को या अन्य समाज के क्रिया-कलापों से प्रभावित नहीं होता | बंजारा या लमानी समुदाय का भी अगर करीबी गहराई से अध्यन करे तो पाएंगे की यह समुदाय भारत में कही भी गया, क्षेत्रीय प्रभाव के बावजुद इस समुदाय की आंतरिक जीवन प्रणाली और ढांचे में कोई विशेष अंतर नहीं आ पाया | अभी भी बंजारों की भाषा लघभग एक जेसी ही है | संस्कृति,पहनावा,गोर माटी,गोर बोली,टांडा संस्कृति,न्याय व्यवस्था में नायक की मुख्य भूमिका, प्रकृति की पूजा इत्यादी | जबकि खुले समाज या समुदाय बाहरी एवं क्षेत्रीय प्रभाव के कारण पुरी तरह से बदल जाते है | इस तरह से कहा जा सकता है की यह बंजारा या लमानी समुदाय की यह एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है की इतना समय बीत जाने के बाद भी उनमे कोई गुणात्मक परिवर्तन नहीं हो पाया |
गोविन्द गुरु महाराज
भारत भूमि अनगिनत स्वातन्त्र्य वीरो को जन्म दे चुकी है | राजस्थान के गुजरात से जुडी हुई सरहद का जिल्ला डूंगरपुर के बांसीया गाव के गवारिया(बंजारा) परिवार में 20 दिसंबर, 1858 गोविन्द गुरु का जन्म हुआ था | उनके पिताजी का नाम श्री बेचरगीर और माताजी का नाम कमलाबाई था |
छप्पनिये अकाल में गोविन्द गुरु की पत्नी और पुत्रो की मृतु हो गई तब उन्होंने गनी नामक विधवा से संसार बसाया, जिनसे दो पुत्र हरी और अमरा ने जन्म लिया |
अब हरी महाराज का परिवार बांसीया गाव में और अमरु महाराज का परिवार बांसवाडा में बसा है |
दलित व वनवासी दोहरी गुलामी की बेडियो से जकड़े हुए थे | उनके शारीरिक श्रम का दोहन होता था |
कुछ समय पश्चात् एक राजगीर नामक गृहस्थ गोसाई से दीक्षा लेकर अपनी पत्नी सहित साधु हो गया |
गोविन्दगुरु को राजगिरी ने अपना शिष्य बनाया और राजगिरी की पत्नी ने गोविन्द गुरु की पत्नी को अपनी शिष्य बनाया |
गोविन्द गुरु श्रद्धा से नतमस्तक हुए और जीवन में रोशनी का रास्ता दिखाते हुए करबद्ध प्रार्थना की | स्वामीजी वनवासी गुमाक्कड़ बंजारा जाती के इस युवाक की ज्ञानपिपासा और समाज सेवा की द्रढ़ इच्छा के भाव को जानकर प्रसन्न हुए और बनवासियो में सामाजिक बुराइयो को दूर करने, समाज को भक्ति भाव से एकजुट करने की प्रेरणा दी|
श्री गोविन्द गुरु जातिगत संस्कार से भी भ्रमणशील व्यापार करने वाला बंजारा था | वे आदिवासियों में ज्ञान का व्यापर करने के लिए आदिवासी क्षेत्र के डगर-डगर, बस्ती-बस्ती,झोपड़ी-झोपड़ी तक व्यापक, सम्यक,एकता,संस्था,शुद्धता,स्वतंत्रता का महत्व समझाते रहे |
उन्होंने "सम्प सभा " नामक संस्था शुरू की जिनमे भिन्न-भिन्न कार्य हेतु ब्भिन्न व्यक्ति की नियुक्ति की |सम्प सभा के उद्देश्य थे -
- मेहनत करो,खेती करो | मजदूरी करो और अपना तथा परिवार का पोषण अपनी मजदूरी से करो |
- गाव गाव में स्कूल खोलो, बच्चो को पढ़ो और ज्ञान का प्रचार करो |
- अपने बछो को संस्कारी बनाओ | संस्कार देनें वाने लोगो से गाव में कथा, वार्ता और व्याख्यान करवाओ |
- अपने परिवार और समाज की आर्थिक स्तिथि सुधारने का उपाय करो |
- स्वदेशी का उपयोग करो | अपनी जरुरत के लिए देशो के बहार बनी हुई किसी वस्तू को काम में मत लो |
- शौच जाकर आवदस्त्त लेना |
- प्रातः काल नियमित रूप से स्नान करना |
- सूर्य दर्शन करना , राम का नाम जपना व सत्संग करना |
- झूठ नहीं बोलना |
- व्यभिचार नहीं करना |
- शराब व मांस का सेवन नहीं करना |
- चोरी छिलानी नहीं करना |
- बिना स्नान कुछ भी नहीं खाना-पीना |
- मांसाहारी लोगो के घर का दाना-पानी नहीं लेना |
- पुरुषो द्वारा बड़ी-बड़ी चोटीया नहीं रखना | महिलाओ द्वारा लाख का चुडा नहीं पहनना |
- ग्यारस के दिन हल नहीं चलाना |
- धार्मिक तिथियों पर उपवास रखना आदि |
History of Gawariya(Banjara) Community
The Gawariya(Banjara) are a class of usually described as nomadic people from the Indian state of Rajasthan, North-West Gujarat, and Western Madhya Pradesh and Eastern Sindh province of pre-independence Pakistan. They claim to belong to the clan of Agnivanshi Rajputs, and are also known as Banjari, Pindari, Bangala, Banjori, Banjuri, Brinjari, Lamani, Lamadi, Lambani, Labhani, Lambara, Lavani, Lemadi, Lumadale, Labhani Muka, Goola, Gurmarti, Gormati, Kora, Sugali, Sukali, Tanda, Vanjari, Vanzara, and Wanji. Together with the Domba, they are sometimes called the "gypsies of India"
Distribution
The origin of
Banjara community is stated in the area between Bikaner and Bahawalpur,
Pakistan. After the fall of the Rajputs, they started spreading across the
country. The Banjara had spread to Andhra Pradesh, Haryana, Karnataka,
Maharashtra, Uttar Pradesh and other states of India. About half their number speak
Lambadi, one of the Rajasthani dialects, while others are native speakers of
Hindi, Telugu and other languages dominant in their respective areas of
settlement. Rathod, Parmar, Pawar, Chauhan,and Jadhav castes belong to Banjara
community in Rajasthan and Gujarat now are in General Seats after the communal
rights taken place in Rajasthan for Reservation in 2008 as they were landlords
in Amarkot, Fathaykot and Sialkot before Partition of India and Pakistan. They
are an ST in Andhra Pradesh (where they are listed as Sugali), Orissa,
Karnataka (SC), Haryana, Punjab, and Himachal Pradesh. Even though, they
settled across the country, they still consider themselves as nomad community.
गवारिया(बंजारा) समाज की जनसंख्या
Total population
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ca. 5.6
million
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Regions with significant populations
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Languages
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Lambadi,
Hindi, Kannada, Telugu and Marathi
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Religion
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Hinduism
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Related ethnic groups
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other
Hindustani populations
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Etymology
The word
"Banjara" must have evolved from Prakrit and Hindi and Rajasthani
words "Bana/Ban or Vana/Van" meaning Forest or Moorlands and
"Chara" meaning 'Movers'. The Banjara are (together with the Domba)
sometimes called the "Gypsies of India".
The word Banjara is a deprecated, colloquial form of the word of Sanskrit origin. The Sanskrit compound-word vana chara, "forest wanderers" was given to them presumably because of their primitive role in the Indian society as forest wood collectors and distributors.
The word Banjara is a deprecated, colloquial form of the word of Sanskrit origin. The Sanskrit compound-word vana chara, "forest wanderers" was given to them presumably because of their primitive role in the Indian society as forest wood collectors and distributors.
Culture
Food
The traditional
food of Banjara is bati (roti). Daliya is a dish cooked using many
cereal, such as wheat or jawar. Banjara people also enjoy many non-vegetarian
foods. Among the non-vegetarian dishes unique to them are saloi, made
from goat blood and other goat parts. In Andhara, fish is their main food. The
Banajara are also known for preferring spicy food.
Dress
Traditional banjara dress

Men wear dhoti and kurta (short with many folds). These clothes were designed specially for the protection from harsh climate in deserts and to distinguish them from others.
Arts, literature and entertainment

Their traditional occupation is nomadic cattle herding. Now they are slowly moving into agriculture and trade.
The accurate history of Lambanis or Lambadis or Banjaras is not known but the general opinion among them is that they fought for Prithvi Raj Chauhan against Muhammad of Ghor. The trail of the Lambadi/Banjara can be verified from their language, Lambadi borrows words from Rajasthani, Gujarati, Marathi and the local language of the area they belong to.
Banjaras originally belong to Rajasthan and they were Rajputs[citation needed] who migrated to southern parts of India for trade and agriculture. They settled down in the southern or central area of the country and slowly loosened contacts with Rajasthan, and their original community. Over a period of time both the communities separated and they adopted the local culture. The language spoken by Banjaras settled in Yavatmal district of Vidarbha, Maharashtra is an admixture of Hindi, Rajasthani and Marathi.
Lambadi Dance is a special kind of dance of Andhra Pradesh. In this form of dance, mainly the female dancers dance in tune with the male drummers to offer homage to their Lord for a good harvest. At Anupu village near Nagarjunakonda, Lambadi dance originated. They are actually semi-nomadic tribes who are gradually moving towards civilization. This dance is mainly restricted among the females and rarely the males participate in Lambadi dance. Lambadi is a special kind of Folk Dance which involves participation by tribal women who bedeck themselves in colorful.
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धन्यवाद हमारी इस पहल का हिस्सा बनने के लिए...हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते है ! आपका दिन शुभ हो .
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